अभ्यंग (Abhyanga) आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक स्नान विधि है, जिसमें शरीर पर औषधीय तेल से मालिश की जाती है। इसे शरीर, मन और आत्मा के समग्र स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। नियमित अभ्यंग से न केवल शारीरिक लाभ मिलता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
अभ्यंग के लाभ
- तनाव और थकान कम करना: शरीर की नस-नाड़ियों को शांत करता है और मानसिक तनाव दूर करता है।
- रक्त परिसंचरण सुधारना: तेल मालिश से रक्त का प्रवाह बेहतर होता है, जिससे अंगों को पोषण मिलता है।
- वात दोष को संतुलित करना: विशेष रूप से वात-प्रकृति के लोगों के लिए उपयोगी है, क्योंकि यह शरीर को स्थिरता और गर्मी प्रदान करता है।
- त्वचा की देखभाल: अभ्यंग से त्वचा को पोषण मिलता है और नमी बनी रहती है, जिससे त्वचा कोमल और चमकदार होती है।
- गठिया और जोड़ों के दर्द में राहत: नियमित अभ्यंग से जोड़ों का दर्द और सूजन कम होती है।
- नींद में सुधार: मालिश से मस्तिष्क शांत होता है और गहरी नींद आने में मदद मिलती है।
- डिटॉक्सिफिकेशन: यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है।
अभ्यंग में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख तेल
- तिल का तेल: वात दोष को संतुलित करने के लिए
- नारियल तेल: पित्त दोष को शांत करने के लिए
- सरसों का तेल: कफ दोष को दूर करने के लिए
- आवश्यक औषधीय तेल: जैसे ब्राह्मी, अश्वगंधा, या शतावरी युक्त तेल का उपयोग विशेष स्वास्थ्य समस्याओं के लिए किया जाता है।
अभ्यंग कैसे करें?
- शरीर को हल्के गर्म तेल से मालिश करें, खासकर जोड़ों, मांसपेशियों और पैरों पर।
- सिर से पैर तक गोलाकार गति में मालिश करें, जिससे रक्त प्रवाह बढ़े।
- तेल को कम से कम 20-30 मिनट तक शरीर पर लगा रहने दें।
- इसके बाद गर्म पानी से स्नान करें।
- यदि संभव हो तो हर्बल स्नान करें।
- मालिश के तुरंत बाद आराम करना लाभकारी होता है।
कब करें अभ्यंग?
- रोज़ सुबह स्नान से पहले
- विशेष रूप से ऋतु परिवर्तन के समय
- व्यायाम के बाद या थकान होने पर
- सप्ताह में कम से कम एक बार नियमित रूप से किया जा सकता है।
अभ्यंग केवल शारीरिक उपचार नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और मानसिक शांति का अनुभव भी प्रदान करता है। अगर इसे जीवनशैली का हिस्सा बनाया जाए, तो यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए अत्यंत लाभदायक है।